Ek Kahani Aisi Bhi

"ये...ये....ये...तुम यहां क्यों रख रही हो माही?" सागर ने जमीन में एक गुल्लक गाड़ती माही से पूछा।

'एक पन्द्रह सोलह साल का दिखने वाला लड़का था। पर उसकी अक्ल एक सात आठ साल के बच्चे से ज्यादा न थी।

"वो इस लिए क्यूंकि इसमें बहुत सारे पैसे हैं। जो अगर बाहर रहे तो कोई भी उन्हे चुरा सकता है। इसलिए मैं इन्हें यहां सेफ कर रही हूं।" माही ने सागर को समझाते हुए कहा और उस गुल्लक के ऊपर मिट्टी डाल कर उसे ढक दिया।

"तो अब ये सेफ रहेंगे? कोई इन्हें यहां से नहीं निकालेगा?" सागर फिर से एक नया सवाल दाग दिया।

"नही...क्योंकि इस बात का सिर्फ तुम्हे और मुझे पता है। और मै तो किसी को नही बताऊंगी क्या तुम किसी को बताओगे ये सिक्रेट?" माही ने खड़े होते हुए पूछा।

"नही...तुम नही बताओगी तो मैं भी नही बताऊंगा।" सागर ने पक्के पन से कहा।

"गुड बॉय । और जब हम दोनो किसी को नही बताएंगे तो कोई इन्हें कभी नहीं निकालेगा। ये यहां सेफ रहेंगे।"माही ने खुश होते कहा । सागर भी मुस्कुरा दिया।

माही और सागर बहुत अच्छे दोस्त थे। दोनो के घर आस पास ही थे।


सागर एक स्पेशल चाइल्ड था। सागर की मां जब सागर बारह साल का था तब एक बीमारी के चलते गुज़र गई थी। आनंद ने दूसरी शादी करने की सोची थी। पर कोई भी औरत सागर की वजह से आनंद से शादी नही करना चाहती थी। बस फिर आनंद ने भी दूसरी शादी का ख्याल छोड़ दिया। तब से सागर अपने पिता आनंद के साथ रहता था।

आनंद ने एक मेड रख ली थी। क्योंकि वो अकेला ऑफिस, घर और सागर को नहीं संभाल सकता था। मेड आनंद के सामने तो सागर का ध्यान रखती थी। लेकिन आनंद के जाते ही वो इधर उधर की चीज़ों में लग जाती थी।


माही का परिवार तभी तभी शिफ्ट हुआ था। माही एक तेरह साल की प्यारी सी लड़की थी। वो एक समझदार लड़की थी । जब वो पहली बार सागर से मिली थी तो वो समझ गई थी कि सागर एक स्पेशल चाइल्ड है। वो सबकी तरह नॉर्मल नही है।

सब बच्चे उसे दूर रहते थे । कोई उसके पास न जाता था। कोई उसके साथ ना खेलता था।

माही का दिल दया से भर आया था। उसने ख़ुद ही सागर की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। सागर को अच्छा लगा था। दोनो जल्द ही बहुत अच्छे दोस्त बन गए थे। माही के माता पिता पढ़े लिखे लोग थे। उन्हे सागर और माही की दोस्ती से कोई दिक्कत नही थी। दोनो का साथ साथ वक्त बीतता था।

जब माही स्कूल जाती तो सागर अकेला हो जाता था। वो बहुत बेसब्री से उसका इंतजार करता था। माही भी स्कूल से आकर उसके साथ ही खेल में लग जाती थी। और खेल खेल में उसे बहुत कुछ सीखाने की कोशिश करती। सागर भी बहुत ध्यान से माही की बातों को सुनता और समझने की कोशिश करता। आनंद जी भी खुश थे कि सागर को एक अच्छी दोस्त मिल गई है। इन दोनो की दोस्ती के कारण ही दोनो परिवार में भी अच्छे ताल्लुकात हो गए थे। अब दोनो ही धीरे धीरे बड़े हो रहे थे। पर उनकी दोस्ती यूंही थी।

सागर की मेड ने अब आन बंद कर दिया था।

अब माही की मां को माही की फ़िक्र होने लगी थी। सागर को उसकी आदत हो चुकी थी। और माही की मां को ये अच्छा नही लग रहा था। वो मां थी शायद इस लिए । या वो एक लड़की की मां थी इसलिए। क्योंकि उन्हें पता था कि माही की एक दिन शादी होगी और उसे दूर जाना होगा। वो नही चाहती थी की सागर की हालत माही के जाने

के बाद बिगाड़ जाए।


इसलिए वो माही को समझती रहती थी कि सागर से मिलना थोड़ा कम करो। माही मां की बात समझ गई थी।

उसने अब सागर से मिलना कम कर दिया था। पर सागर नही माना और वो खुद ही माही से मिलने उसके घर आ जाता था।

अब माही की मां माही की शादी करना चाहती थी। उन्हे माही की फिक्र थी। और उनकी फ़िक्र गलत भी ना थी। अब माही छब्बीस की हो गई थी। फिर कई रिश्तों के बाद एक रिश्ता माही के लिए पसंद कर लिया गया था।


"पता है अब मेरी शादी होने वाली है।" एक दिन सागर और माही सागर के घर के गार्डन में बैठे गार्डनिग कर रहे थे । तब माही ने सागर को बताया।

"अच्छा। अब तुम ब्राइड बनोगी? वो मिली दीदी जैसे?" सागर ने एक्साइटेड होकर पूछा। कुछ दिन पहले ही कालोनी में एक लड़की की शादी हुई थी। और उसमे माही और सागर दोनो ने ही बहुत एन्जॉय किया था।

"हां। बिल्कुल वैसे ही।" माही ने मुस्कुरा कर कहा। और साथ ही क्यारी से एक सूखा पेड़ उखाड़ फेंका।

"तो फिर तुम भी चली जाओगी?" सागर एकदम ही उदास हो गया। उसे याद आया कि मिली दीदी शादी के बाद चली गई थी।

"हां जाना तो पड़ेगा। ये तो रस्म होती है।" माही ने कहा और कुछ पौधो के पीले और सूखे पत्ते तोड़ने लगी।

सागर चुप हो गया। और माही को देखने लगा।

"बहुत सारे पौधे बेकार हो गए हैं। इन्हे खाद की ज़रूरत है। मै आनंद अंकल से कहूंगी कि हमने जो खाद तैयार किया हुआ ही वो अब निकलवा लें ......" माही अपनी ही धुन में बोलती जा रही थी कि तभी उसे एहसास हुआ की सागर चुप है।

"क्या हुआ तुम चुप क्यों हो?" माही ने उदास बैठे सागर के पास बैठते हुए पूछा।

"तुम मुझे छोड़ के चली जाओगी?" सागर की आंखो में आंसू आ गए थे।

"अरे....अच्छा तुम चुप हो जाओ वरना मैं बात नही करूंगी।" माही उसे रोता देख कर खुद भी उदास हो गई।

" नही प्लीज़। लो मैं हो गया चुप।" सागर ने जल्दी से अपने आंसू साफ किए।

"गुड बॉय। देख सागर ये तो करना पड़ता है। सबकी शादी होती है। और शादी के बाद जाना भी पड़ता है अपने ग्रूम (दूल्हे) के पास।" माही ने सागर को समझने की कोशिश की।..

"तो तुम ...मुझसे शादी कर लो। मेरी ब्राइड बन जाओ। फिर तुम यहीं रहोगी।


सागर की आंखो में चमक उभरी।

माही उसकी बात सुन कर हैरान रह गई। ये क्या कह दिया था सागर ने। वो चुप उसे देखती रह गई...



"माही ज़रा पानी तो लाना बेटा।" माही के माता पिता माही की शादी की तैयारियों में पूरी तरह लग गए थे। अभी भी वो माही के लिए शॉपिंग कर के ही लौटे थे।

"माही बेटा पानी ले आओ बहुत तेज़ प्यास लगी है।" माही की मां ने माही का कोई जवाब न पाकर दोबारा आवाज़ लगाई।

"अरे रुको मैं ले आता हूं हो सकता है सो गई हो।" राकेश जी खुद ही फ्रिज से बोतल निकाल लाए ।

पानी पीने के बाद माही की मां माही के कमरे की तरफ चल दी। वो माही को उसकी शॉपिंग दिखाना चाहती थी।

और वैसे भी शाम हो रही थी।

" अरे माही तो यहां भी नही है। " नेहा जी ने माही के खाली कमरे को देखते हुए खुद से ही कहा।

"माही....! माही.....! कहां हो तुम?" अब नेहा जी परेशान हो गई थी। वो पूरे घर में माही को ढूंढ रही थी।

"क्या हुआ?" राकेश जी ने नेहा जी को परेशान देख कर पूछा।

"पता नही माही कहां चली गई है। पूरे घर में देख लिया है मैने।" नेहा जी ने परेशान से लहज़े में कहा।

" अरे परेशान क्यों होती हो। आनंद जी के यहां होगी सागर के साथ।" राकेश जी ने नेहा जी को तसल्ली दी।

"मैने मना किया था उसे। कि सागर के साथ अब वक्त बिताना कम करो। पर ये लड़की है कि सुनती ही नहीं। जाइए जरा बुला कर लाइए अपनी लाडली को।" नेहा जी ने हल्के से झुंझलाते हुए कहा

"अच्छा भागवान गुस्सा मत करो मै बुला कर लाता हूं।" राकेश जी ने कहा और आनंद जी के घर की तरफ चल दिए।


"माही ...माही बेटा चलो तुम्हारी मां तुम्हे बुला रही है।" राकेश जी आनंद जी के घर के गेट में घुसते हुए बोले।

"हाय अंकल।" सागर जो गार्डन में बेंच पर बैठा था उस ने अपना हाथ हिल कर राकेश से ग्रीट किया।

"हैलो बेटा। माही यहां नही है क्या?" राकेश जी ने सागर को अकेला बैठे देखा तो पूछा। क्योंकि वो अगर यहां होती तो सागर के साथ ही होती।

"नो......नो अंकल माही यहां नही है।" सागर ने गार्डन से बाहर आते हुए कहा।

"अच्छा...फिर कहां चली गई?" अब राकेश जी भी परेशान से हो गए थे। वो चुपचाप बिना कुछ कहे वहां से निकल आए।

और फिर तो जैसे उन्होंने पूरी कालोनी छान मारी। माही का कहीं पता नही लगा था।

"अरे क्या हुआ भाई साहब परेशान लग हैं ?" आनंद जी अपना स्कूटर खड़ा कर राकेश जी से पूछा। जो बाहर खड़े परेशानी से इधर उधर देख रहे थे। नेहा जी अंदर माही के और दोस्तों से फोन के के पूछ रही थी।

"आनंद जी पता नही माही नही मिल रही।" राकेश जी अब बकायदा रोने लगे थे। माही उनकी इकलौती बेटी थी। जो उन्हें जान से भी ज़्यादा प्यारी थी। उसका इस तरह ना मिलना उनकी आंखों में आंसू भर गया था।

"अरे....माही बिटिया तो बड़ी समझदार है। ऐसे कैसे कहीं जा सकती है। यहीं कहीं होगी। आ जायेगी आप परेशान न होइए।" आनंद जी ने उनके कंधे पर हाथ रख कर उन्हे तसल्ली देनी चाही। पर सच तो ये था वो खुद भी परेशान हो गए थे। माही भी उन्हे सागर की तरह ही प्यारी थी।

"नही है आनंद जी । सब जगह देख चुके हैं। एक बार नहीं बल्कि कई बार। " राकेश जी ना उम्मीद से बोले ।

"चलिए पुलिस स्टेशन चलते हैं। आइए जल्दी बैठिए । " आनंद जी ने अपना स्कूटर स्टार्ट किया और राकेश जी को बैठने का इशारा किया।

राकेश जी चुपचाप बैठ गए अब इसके अलावा कोई रास्ता न था।


"किसी आशिक वाशिक के साथ भाग तो नही गई? शादी के करीब आते ही लडकियां यही करती हैं।" पुलिस

इंस्पेक्टर ने हस्ते हुए कहा।

"ये क्या बकवास कर रहें हैं आप? मेरी बेटी ऐसी नही है।" राकेश जी गुस्से से लाल हो गए थे।

"ओय शांति रख पुलिस स्टेशन में बैठ के अपन को ही धमकाता है।" पुलिस वाला राकेश जी के लहज़े पर बिफर कर बोला।

"देखिए सर हम बहुत परेशान है। आप प्लीज़ रिपोर्ट लिखिए और उसे ढूंढने में हमारी मदद करिए।" आनंद जी ने

जब मामला गरम होते देखा तो बेहद आराम से बोले ।

"हां ठीक है ठीक है। हमे हमारा काम मत समझा। फोटो देते जाओ छोकरी का ..... साठे अरे ए साठे...इनसे छोकरी का फोटो ले रे।" इंस्पेक्टर ने हवलदार को आवाज लगाते हुए कहा। और अपनी कुर्सी पर पसर कर लेट सा गया।

राकेश जी ने गुस्से से इंस्पेक्टर को देखा और बाहर निकल गए।

राकेश जी भी पीछे पीछे चल दिए।

"भाईसाब आप परेशान न होए। अपनी बच्ची जल्दी ही मिल जायेगी। चलिए घर चलिए। भाभी जी भी परेशान हो रही होंगी। आपको उन्हे भी संभालना है। हिम्मत रखिए।" आनंद जी ने उन्हे समझाते हुए कहा।


आज एक हफ्ता गुज़र चुका था। माही का कुछ भी पता नहीं चल पाया था। नेहा जी और राकेश जी दोनो का ही हाल बुरा था। कहाँ तो वो माही की शादी की तैयारियां कर रहे थे और कहां अब उसे ढूंढते फिर रहे थे।

आनंद जी भी परेशान थे। और सागर वो बस चुप था। कुछ नहीं बोल रहा था। सब उसकी भी हालत समझ रहे थे। वो माही की जाने से चुप हो गया था। उधर लड़के वालों ने भी परेशान करना शुरू कर दिया था।

उन्होंने राकेश जी और नेहा जी को बहुत बेइज्जत किया। की जब आपकी बेटी का चक्कर कहीं और था। तो क्या ज़रूरत थी हमारी इस तरह बदनामी करने की।


अब पूरी कालोनी में यही बात हो रही थी की माही किसी लड़के साथ भाग गई है। क्योंकि हमारे समाज की सोच कभी बढ़ती नही है। शादी करीब थी तो सबने यही मान लिया की जरूर उसका कोई आशिक होगा और वो उसके साथ भाग गई।

पुलिस ने भी अब तक कोई खबर न दी थी। रोज़ ही पुलिस स्टेशन के चक्कर लगते थे।

पहले दिन गुज़रे फिर हफ्ते और अब तो महीना भी गुज़र चुका था। अब तो नेहा जी और राकेश जी के आंखो के आंसू भी सूख चुके थे। अब तो उन्होंने खुद को ये मानने पर मजबूर कर लिया था। कि शायद माही किसी लड़के साथ ही भाग गई है। पर उनके दिल ये बात मानने को तैयार ना थे। उन्हे अपनी परवरिश पर पूरा भरोसा था।

अब उन्होंने ये घर छोड़ने का फैसला कर लिया था। क्योंकि जहां से भी गुजरते थे। हर किसी की ज़बान पर यही होता की लड़की भाग गई लडकी भाग गई।

वो अब सहन नही कर पा रहे थे। आनंद जी ने उन्हे बहुत समझाने की कोशिश की। लेकिन उनका इरादा नहीं बदला।

राकेश जी और नेहा जी ने सारा समान शिफ्ट कर लिया था। वो आखरी बार सागर और आनंद जी से मिलने आए थे। सागर और आनद जी से विदा लेकर वो भरी कदम से वहां से चले गए।


उनके जाने के बाद सागर गार्डन में आ बैठा। और खाद वाले गढ्ढे की तरफ देख कर बोला।

"माही देखा मैने किसी को नहीं बताया कि मैंने तुम्हे सेफ कर लिया है। अब तुम्हे कोई नही चुराएगा।" सागर के होंठो पर मुस्कुराहट थी।


समाप्त


इस कहानी का मक़सद स्पैशल चाइल्ड के प्रति कोई नेगेटेविटी फैलाना नही है। बल्कि लोगो को जागरुक करना है कि स्पेशल चाइल्ड को हम सबकी तवाज्जोह की ज़रूरत है। अगर वो सिर्फ एक इंसान की बातें सुनेगा उसके साथ रहेगा तो उसका माइंड उतना ही ग्रो करेगा जितना एक इंसान उसे अपनी समझ के मुताबिक़ समझा सकता है। लेकिन जब हम सब उस पर ध्यान देंगे तो वो सबकी समझ के मुताबिक़ ग्रो करेगा। अगर वो सिर्फ़ माही के साथ न होकर सबके साथ उठता बैठता तो उसे माही की इतनी आदत नही होती और वो ऐसा कोई क़दम ना उठाता। सो बस इस कहानी के ज़रिए हमने यही बताना चाहा हैं कि स्पेशल चिल्ड्रन को एक की नही बल्कि हम सबकी तवाज्जोह की ज़रूरत है।



 ~Anushthi

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